पूरे देश में
जश्न का माहोल
है, जयपुर से
दिल्ली और कश्मीर
से कन्याकुमारी तक।
कांग्रेस पार्टी ने कर
लिया चिंतन। देश
के सबसे पुराने
राजनीतिक दल कांग्रेस
का दो महीनों
से चिर प्रतिक्षित
चिंतन शिविर 18 और
19 जनवरी को जयपुर
में सम्पन्न हो
गया। पूरा
देश सोच
रहा था कि
कांग्रेस के आला
नेताओं के मार्गदर्शन
में पूरी पार्टी
देश के हालातों
और अंतर्राष्ट्रीय परिदृष्य
पर चिंतन करेगी
और एक नए
सोच के साथ
देश को दिशा
देगी, परन्तु देश
को गहरी निराशा
ही हाथ लगी, करोड़ों
रूपये खर्च करने
के बाद भी
कांग्रेस पार्टी देश को
कोई नया चिंतन
तो नहीं दे
पाई, अलबत्ता उसने
अपने राजकुमार राहुल
गाँधी को कांग्रेस
का भावी चेहरा
बताकर 2014 में होने
वाले चुनावों में
अपना सेनापति जरूर
घोषित कर दिया।
हांलाकि कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती
सोनिया गांधी ने चिंतन
शिविर की शुरूआत
में पार्टी के
सामने पांच प्रमुख
चुनौतियों का जिक्र
किया था । जिनमें
महिलाओं पर बढ़
रहे अत्याचार, सरकार
पर लग रहे
भ्रष्टाचार के आरोप,
सोशल मीडिया में
कांग्रेस पर हो
रही टीका टिप्पणी
को रोकने में
विफलता और इन
सबके कारण कांग्रेस
का घटता जनाधार
प्रमुख रूप से
सामने आए। लेकिन
इन दो दिनों
में कांग्रेस ने
इन सबका एक
ही समाधान खोजा-
राहुल गांधी। प्रश्न
यह है कि
क्या कांग्रेस पार्टी
राहुल के अलावा
किसी और को
आगे रखने का
साहस कर सकती
थी ? इसलिये यह
मानना न्यायसंगत नहीं
होगा कि देश
के कई सारे
युवा नायकों की
योग्यता परखने के बाद
125 साल पुरानी कांग्रेस ने
अपने सबसे योग्य
उम्मीदवार के रूप
में राहुल गांधी
को देश और
पार्टी का चेहरा
बनाने का निर्णय
किया है।
पहले बिहार और फिर
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस
ने राहुल गांधी
को चुनाव की
कमान सौंपी थी।
नतीजा सबके सामने
है। बिहार
में कांग्रेस को
4 सीटें मिलीं और उत्तरप्रदेश में
कांग्रेस को 28 सीटों पर
संतोष करना पड़ा।
गुजरात में तो
खैर राहुल गांधी
दस्तूर के लिए
ही गए। यदि यही
प्रदर्शन राहुल के अलावा
किसी और कांग्रेसी
नेता का होता
तो कांग्रेस में
उसका क्या हश्र
होता, यह तो
राजनीति की थोड़ी
बहुत जानकारी रखने
वाला व्यक्ति भी
बता सकता है।
बात यह नहीं
है कि कांग्रेस
पार्टी में राहुल
गांधी को दूसरा
बड़ा नेता बना
दिया गया है
और अब सोनिया
गांधी के बाद
पूरी पार्टी राहुल
गांधी को ही
रिर्पोट करेगी, बात यह
है कि कांग्रेस
ने राहुल गांधी या
गांधी परिवार के
अलावा किसी और
को आगे करने
का साहस क्यों
नहीं किया ? ऐसी स्थिति
में जबकि स्वयं
कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया
गांधी यह मान
रही हैं कि
मध्यम वर्ग का
कांग्रेस के प्रति
मोह भंग हो
रहा है, देशभर
की महिलाओं में
कांग्रेस के प्रति
निराशा है,
2014 में होने वाले
चुनावों के लिए
कांग्रेस को नए
सहयोगियों की खोज
भी करनी पड़ेगी,
पूरी कांग्रेस पार्टी
मनमोहन सरकार के निर्णयों
की अच्छाइयों को
जनता के बीच
ले जाने में
असफल रही है
और सरकार में
भ्रष्टाचार भी चरम
पर है, तो
क्या इतनी सारी
चुनौतियों से निपटने
के लिए कांग्रेस
को एक नए
चेहरे को प्रस्तुत
नहीं करना चाहिये
था ? प्रश्न यह
भी है कि
क्या कांग्रेस पार्टी
में कोई वास्तविक
लोकतंत्र बचा भी
है या यह
पार्टी सिर्फ गांधी परिवार
के नीचे जुटे
राजनीतिक अवसरवादी राजनेताओं का
जमघट मात्र रह
गई है।
देश यह भी
जानना चाहता है
कि मुंबई हमले
का समय हो
या दामिनी प्रकरण
के समय राहुल
गांधी ने आगे
आकर देश का
मार्गदर्शन क्यों नहीं किया
? क्यों राहुल गांधी संसद
सत्रों में विचारोत्तेजक
बहस में भाग
लेकर अपने विचारों
से देश को
अवगत कराते? राहुल
गांधी में सोनिया
पुत्र होने के
अलावा ऐसी कौनसी
योग्यता है जिसके
कारण भारत जैसे
विशाल देश को
उनमें अपना भविष्य
देखना चाहिये ? क्या
मनमोहन सरकार के दौरान
हुए भ्रष्टाचारो पर
राहुल गांधी की
राय किसी ने
सुनी है ? या
किसी ने आम
आदमी के साथ
वाली कांग्रेस सरकार
के राज में
आम आदमी की
बदहाली पर राहुल
के संवादों को
महसूस किया है
? या
कोई यह बता
दे कि राहुल
भारत की विदेश
नीति, शिक्षा नीति,
अर्थनीति या राजनीति
की गहरी समझ
रखते हैं ?
दरअसल सच्चाई यह है
कि कांग्रेस अपनें
स्थापित नेताओं से छुटकारा
पाना चाहती है,
वह उन सभी
बुर्जुग हो चुके
नेताओं को यह
संदेश देना चाहती
है कि जब
सोनिया गांधी अपने पुत्र
के लिए रास्ता
बना सकती हैं
तो फिर इन
स्थापित नेताओं को भी
अपना स्थान अपनी
अगली पीढ़ी को
सौंपने के लिए
तैयार रहना चाहिये।
जाहिर है राहुल
गांधी की टीम
के नाम पर
जो युवाओं की
फौज कांग्रेस में
देखने को मिल
रही है वह
पुराने और धुरंधर
राजनेताओं के पुत्रों
की ही है,
चाहे वो ज्योतिरादित्य
सिंधिया हों, सचिन
पायलट हों, जतिन
प्रसाद हों या
मिलिंद देवड़ा।
हकीकत यह भी
है कि राहुल
गांधी ने अपने
राजनीतिक जीवन में
युवा कांग्रेस या
कांग्रेस के छात्र
संगठन एन एस
यू आई से
कोई कर्मठ और
योग्य राजनेताओं या
कार्यकर्ताओं का निर्माण
करने में कोई
सफलता हासिल नहीं
की है, अपितु
वे एक ऐसी
राजनीतिक विरासत को अमली
जामा पहना रहे
हैं जो बुर्जुआ
हो रही कांग्रेस
की प्लास्टिक सर्जरी
से ज्यादा कुछ
और नहीं है।
यह भी सच
ही है कि
राहुल गांधी को
कांग्रेस द्वारा आगे किया
जाना जनता का
उन विषयों से
ध्यान भटकाने की
कोशिश मात्र है
जिनकी बात राहुल
की मां और
कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया
गांधी ने चिंतन
शिविर के उदघाटन
करते हुए कही
थी।
यह देश
को तय करना
है कि वह
कांग्रेस पार्टी की सामूहिक
रूप से हो
रही प्लास्टिक सर्जरी
को ही देश
में बदलाव की
शुरूआत माने या
फिर देश में एक
ऐसी राजनीतिक व्यवस्था
को जन्म दे,
जो परिवारवाद की
छाया से दूर
लेकिन देश के
प्रति मातृभक्ति को
समर्पित राजनीतिक चिंतन और
कार्यों के प्रति
समर्पित हो।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
(लेखक सेंटर फार मीडिया
रिसर्च एंव डवलपमेंट
के निदेशक हैं
।)
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