देश की जनता त्राही त्राही कर रही है, कोई तारणहार भी नहीं मिल रहा है। जिन लोगों को चुनकर देश के मतदाताओं ने अपने भविष्य को उनके हाथों में सौंपा था, वे ही उनकी दुर्दशा का कारण बन गये हैं। यह इस देश के नागरिकों का दुर्भाग्य नही तो और क्या है कि जिस व्यक्ति को अर्थशास्त्री होने के नाते से विश्व भर में जाना जाता है और जो भारत में इस कथित नवउदारवादी नीतियों का प्रणेता है, वह व्यक्ति और उसकी आर्थिक नीतियां ही देश के लिये श्रापित दंश बन गये हैं।
सरदार मनमोहन सिंह कोहली और उनकी सरकार देश के लिये अभिशाप साबित हो रहे हैं, एक ऐसा अभिशाप जिसे लोकतंत्र और विभाजित विपक्ष से जीवन का वरदान मिला है। इस अभिशाप को आम आदमी के आंसू, किसानों, मध्यमवर्ग और मजदूरों की आत्महत्याएं भी दूर नहीं कर पा रही हैं। तो क्या यह वह समय है, जब आम आदमी को विद्रोही हो जाना चाहिये और सत्ता प्रतिष्ठान पर बैठे इन राजनेताओं और राजनीतिक दलों के प्रति असहयोग का रास्ता अपनाना चाहिये।
भारत के विभाजन के बाद यह पहला अवसर है जब देश में निराशा का वातावरण है, देश और देश के नागरिकों के हितों की रक्षा करने वालों की निष्ठाओ और प्रतिबद्धताओं पर विश्वास का संकट है। सरकार स्वयं को बचाने के लिये हर किसी को ना केवल चोर और लुटेरा साबित करने में जुटी है अपितु भारत के नागरिकों को पंथों और जातीयता के आधार पर बांटने का अक्षम्य अपराध भी कर रही है और इसके लिए सत्ता की असीम ताकत का भरपूर दुरुपयोग कर रही है।
जिस सरकार को हम इसलिये चुनते हैं कि वह हमारे नागरिक अधिकारों की रक्षा करेगी। देश के युवाओं के लिये रोजगार के अवसर पैदा और प्रदान करेगी। देश में वह माहौल पैदा करेगी कि किसान और मजदूर अपनी मेहनत से देश का और अपना भाग्य बदल सकें। एक ऐसी अर्थ व्यवस्था की स्थापना करेगी, जो ना केवल बढ़ती महंगाई पर अंकुश लगाये, अपितु देश में व्यापार करने वाले घरानों की मुनाफाखोरी की प्रवृत्ति पर भी लगाम लगाये। एक ऐसी व्यवस्था जो सामाजिक समरसता और सामंजस्य के साथ देश को एकता के सूत्र में बांध सके।
प्रश्न यह है कि क्या वर्तमान सरकार इनमें से एक भी कसौटी पर खरी उतरी है ? क्या भारत सरकार का एक भी मंत्री ऐसा है जिसकी आय में कमी हुई हो ? या एक भी औद्यौगिक घराना ऐसा है जिसको लाभ की बजाय घाटा हुआ हो ? अथवा एक भी विदेशी निवेशक भारत में अपना निवेश यहां के मजदूरों और समाज की वजह से वापस भागा है ? तो फिर क्या कारण है कि भारत का युवा निराश है, किसान और मजदूर आत्महत्या कर रहे हैं ? देश भर की गृहणियां आंखों में आंसू लिये अपनी रसोई चलाने के लिये बाध्य हैं।
1991 में राजीव गांधी की हत्या के बाद बनी सरकारों ने देश के नागरिकों से ऐसे विकसित भारत का वायदा तो भारत के नागरिकों से नहीं किया था, कि महज 20 सालों में देश की एक तिहाई से भी अधिक आबादी को दो समय के भोजन के लिये सरकारी योजनाएं का दास बना देगें। देश में शिक्षा, चिकित्सा और कानून व्यवस्था भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा दिलाने के प्रति सरकारी बेबसी और बेरुखी देश को खरोच खरोंच कर घायल कर देगी, और सरकार अपने उदारवादी नीतियों के कारण आँखों पर पट्टी बांध लेगी ।
दरअसल, यह सरकार भारत के नागरिकों के प्रति अपने उत्तरदायित्व को पूरा करने में विफल रही है। सरकार ऐसे लोगों के प्रभाव में काम कर रही है, जिनके लिये आम आदमी की गरिमा, सज्जनता और जिंदगी की कोई कीमत नहीं, उनके लिये पैसा ही भगवान हो गया है। तभी तो देश में बाजारवाद हावी हो गया है और जब बाजारवाद हावी होगा तो आई पी एल, कामनवैल्थ, टू जी स्पैक्ट्रम, खाद्यान्न, टेट्रा ट्रक, कोयला और मैट्रिक्स जैसे घोटालों के रूपों में देश को खोखला कर दिया जाएगा।
देश को इससे पहले इतना कमजोर और कर्महीनता से ग्रस्त प्रधानमंत्री कभी नहीं मिला। स्वार्थी और अवसरवादी राजनेताओं की इस यू पी ए सरकार ने भारत को ना केवल दोनों हाथों से लूटा है, अपितु देश के आम नागरिकों के मनोबल को तोड़ने का अक्षम्य अपराध भी किया है।
2009 के आम चुनावों में आम आदमी के साथ का नारा देकर सत्ता में लौटा ये गठबंधन महंगाई को घटाने की बजाय नियंत्रित करने में भी विफल रहा है। विदेशो में जमा कालाधन इन अवसरवादियों की विशुद्ध कमाई है। जिन लोगों ने भ्रष्ट तरीकों से अकूत संपदा अर्जित की है, वे इस जमघट के सेनापति हैं, और उस पर सरदार मनमोहन सिंह कोहली को ईमानदार राजनेता कहा जाता है, यह भारत का अपमान है।
दरअसल, मनमोहन सिंह कोहली लाचार, हताश और कमजोर व्यक्ति हैं। जो एक आज्ञाकारी और बेजान पुतले की तरह भारत का नेतृत्व कर रहे हैं। क्या हमें एक पुतले से देश की अस्मिता और नागरिकों की गरिमा को बचाए रखने की उम्मीद रखनी चाहिये? क्या देश का एक भी व्यक्ति सरदार मनमोहन सिंह कोहली की सरकार को ईमानदार और आम आदमी के साथ के लिये प्रतिबद्ध कह सकता है? देश को सरदार की नहीं असरदार प्रधानमंत्री की जरूरत है, सुन रहे हैं आप……..
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
(लेखक सेंटर फार मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट के निदेशक हैं )
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