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Wednesday, November 3, 2010

भ्रष्टाचरण और कांग्रेस

जरा याद कीजिये 2009 का आम चुनाव। कांग्रेस ने स्लम डॉग मिलेनियर फिल्म के गीत ‘जय हो’ को चुनावों हेतु अपने लिए ब्रांड गीत बनाया था, और उसी गीत को गांव गांव बजाकर वह सत्ता के सिंहासन पर जा बैठी। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यू पी ए ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सत्ता संभाल ली। सत्ता संभालने के दो साल बाद ही यू पी ए सरकार की नीतियों के कारण आत्महत्या कर रहे किसानों पर बनी फिल्म ‘पीपली लाइव’ के जरिये एक और गीत सामने आया, ‘सखी, सैंया तो बहुत ही कमात हैं, मंहगाई डायन खाए जात है’। ये दोनों गीत ही कांग्रेसी शासन की कथनी और करनी का अन्तर स्पष्ट कर देते हैं।
हाल ही में मुम्बई में सामने आए आवास घोटाले ने एक बार फिर साबित किया है कि कांग्रेस को सत्ता भ्रष्टाचार का नंगा खेल करने के लिए ही चाहिये। यह बार बार याद रखे जाने की जरूरत है कि जैसे भारत के स्वाधीनता आंदोलन नेतृत्व का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार आजाद भारत में सत्ता के सर्वाधिक दुरूपयोग और उसे भ्रष्ट करने के लिये जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गाँधी का नेतृत्व जिम्मेदार है।
दरअसल, कांग्रेस ने एक राजनीतिक दल और सरकार के रूप में अपने अधिकार का इस कदर दुरूपयोग किया कि सिर्फ कांग्रेस ही नहीं भारत की संपूर्ण राजनीति भ्रष्टाचार का केन्द्र बन गई । यह पूछा ही जाना चाहिये कि लोहिया और जयप्रकाश के शिष्य लालू यादव और मुलायम सिंह ने राजनीति में भ्रष्टाचार करना कहां से सीखा? यह भी जानने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और मुसलमानों का पक्का वोट बैंक होने के बाद भी हर चुनाव में बसपा पर टिकिट बेचने के आरोप क्यों लगते हैं? ऐसा कौन होगा जिसने राजनीति में
शुचिता लाने के लिए कृत संकल्प राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को एक लाख रूपये की रिश्वत लेते हुए टेलीविजन पर नहीं देखा? और वामपंथियों ने तो भ्रष्ट आचरण की ऐसी आंधी चलाई जो केवल रूपये पैसे तक सीमित नहीं रही, अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए उसने कई बेगुनाहों को अपनी राजनीतिक बर्बरता का निशाना भी बनाया।
जब गंगा का उद्गम ही गंदा और अपवित्र हो तो वह पवित्रता कहां से प्रदान करेगी? आजादी के बाद कांग्रेस और विशेषकर नेहरू परिवार ने सत्ता का उपभोग किया है, यह ही वह समय था जब भारत के सम्मान और स्वाभिमान की नींव रखी जानी थी, इस दौर की ही सरकारों पर यह जिम्मेदारी थी कि वे भारत के नागरिक को स्वच्छ, ईमानदार और संवेदनशील प्रशासन उपलब्ध कराते, जिसमें आम आदमी अपनी गरिमा को महसूस कर पाता। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने ऐसा रास्ता चुनना ज्यादा बेहतर समझा, जिसमें उनके वंश और पीढ़ियों के राजनीतिक साम्राज्यशाही की रक्षा तो होती थी, परन्तु आम भारतीय पांच साल में एक बार वोट देने वाला ऐसा गरीब और बेबस मतदाता बन गया जो हर बार अपनी तकदीर संवारने के लिए वोट देता था, और उसे हर बार लुभावने नारों और विज्ञापनों के जरिये छल लिया जाता था।
दरअसल, नेहरू की कांग्रेस ने भ्रष्टाचार की शुरूआत 1948 में ही कर दी थी, जब कश्मीर में पाकिस्तान की धुसपैठ का जवाब देने के लिए सेना के लिए खरीदी जाने वाली जीपों में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त कृष्णा मेनन की भूमिका सामने आई। इन्हीं कृष्णा मेनन की भ्रष्ट भूमिका को जानते बूझते हुए नेहरू सरकार ने ना केवल उनके खिलाफ चल रही जांच को बंद कर दिया, अपितु कृष्णा मेनन के चुप रहने की कीमत पण्ड़ित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हैं मंत्रीमंडल में शामिल कर के चुकाई।
भारतमाता की सुरक्षा के लिए खरीदी गई बोफोर्स तोप से लेकर कारगिल में शहीद हुए सैनिक अधिकारियों के लिए मुंबई में आदर्श हाउसिंग सोसायटी द्वारा बनाए गए फ्लैट्स घोटाले ने यह भी साबित कर दिया है कि कांग्रेस के लिए सैनिकों की कीमत एक चोकीदार से ज्यादा नहीं है? कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी से लेकर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह तक ने आज तक कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए अपराधों के लिए देश से क्षमा नहीं मांगी है, अपितु वे इन मामलों में लीपा पोती करने की ही कोशिश कर रहे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को हिन्दुस्तान के अंदर दो हिंन्दुस्तान तो नजर आते हैं। एक गरीब हिन्दुस्तान और दूसरा अमीर हिन्दुस्तान, और वे गरीब हिन्दुस्तानियों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए तरह तरह के स्वांग रचते हुए भी दिखाई देते हैं। लेकिन वे कभी आजाद भारत में हुए भ्रष्टाचार पर श्वेत पत्र प्रकाशित करने की बात नहीं कहते। वे ये भी नहीं कहते कि विदेशों में जमा काला धन भारत में लाने के लिए उनके पास क्या कार्ययोजना है? उनकी बातें तो बड़ी बड़ी और साफ सुथरी हैं लेकिन क्या उनके पास इस बात का जवाब है कि बोफोर्स तोप दलाल क्वात्रोची को किस राजनीतिक परिवार के संरक्षण के कारण भारत का कानून सजा नहीं दे पाया है। दरअसल, वे ऐसे राजकुमार की तरह बर्ताव कर रहे हैं जो अपने साम्राज्य को बनाए रखने के लिए तरह तरह के स्वांग रच रहा है। राहुल गांधी को चाहिये कि वे राजनीति से कुछ समय निकाल कर अपनी युवा टीम के साथ नॉक आउट फिल्म देखें, जिसमें विदेशों में जमा भारतीय मुद्रा को वापस लाने की फिल्मी कोशिश की गई है।
क्या कोई भी व्यक्ति जो राजनीतिक मामलों की जरा सी भी समझ रखता है, वो इस बात पर सहमत हो सकता है कि पिछले महिने संपन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए भ्रष्टाचार में कांग्रेसी नेता शामिल नहीं थे? भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने खुद यह माना है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित की पूरे आयोजन की तैयारी में “बड़ी भूमिका” थी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि नेहरू-गांधी परिवार के अति विश्वस्त लोगों के नाम ही भ्रष्टाचार करने में प्रमुख हैं। प्रश्न यह है कि भोपाल गैस त्रासदी के ‘खलनायक’ मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह आज कहां हैं? तेल के बदले अनाज घोटाले के मुख्य किरदार पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह आज कितने लोगों को याद हैं? और छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी तक राजनीतिक परिदृष्य से गायब हैं।कांग्रेस का यह तंत्र भ्रष्ट तरीके से अर्जित किये गए धन को वापस वसूलने की बजाय उस व्यक्ति को हटा देने में ज्यादा विश्वास रखता है, जिसका भ्रष्टाचार उजागर हो गया है।

कॉमनवेल्थ खेल हों या नरेगा कार्यक्रम कांग्रेस सत्ता किसी भी काम की शुचिता को बनाये रखने में विफल रही है। तो जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता ही उनके नेताओं द्वारा संरक्षित, पोषित और पल्लवित भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़े हों और भारत के जन को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए अपने ‘गिलहरी’ के समान ही सही योगदान को देकर अपने राजनीतिक जीवन को सार्थक करें, क्योंकि यदि गंगोत्री पावन और पवित्र होगी तो वह गंगा अपनी निर्मलता से पूरे देश को भ्रष्टाचार के संत्रास से मुक्त करा देगी।

सुरेन्द्र चतुर्वेदी
(लेखक सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट के निदेशक हैं)

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