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Sunday, November 14, 2010

सोनिया गांधी से जवाब मांगते सवाल

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निवर्तमान सरसंघचालक श्री कुपहल्ली सीतारमैया सुदर्शन द्वारा कांग्रेस और संप्रग की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गांधी पर की गई टिप्पणियों से राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। जब भी किसी व्यक्ति ने श्रीमति सोनिया गांधी के खिलाफ कुछ भी कहा है, तो कांग्रेस और उसमें पलने-बढ़ने वाले नेताओं ने हंगामा मचा दिया है। ऐसा प्रतीत होने लगा है कि श्रीमति सोनिया गांधी के खिलाफ बोलना, उनसे स्पष्टीकरण की अपेक्षा करना अपराध हो गया है।
क्या इस देश की जनता को यह जानने का अधिकार नहीं है कि देश के 118 करोड़ लोगों का भाग्य जिन लोगों के हाथों में हैं, वे आखिर हैं कौन? जब भारत सरकार इस देश में रहने वाले लोगों की मंशा और कार्यकलापों की जांच करने के लिए पूरे देश की सुरक्षा एंजेसिंयो को झौंक सकती है, तो उस विदेशी मूल की महिला की जांच करने में किसी को क्यों और क्या आपत्ति हो सकती है, जिसके कारण देश की जनता को मन संदेह की भावना उपज रही है।
सभी जानते हैं कि श्रीमति इंदिरा गांधी ने बडे़ ही अनमने मन से राजीव और श्रीमति सोनिया गांधी के विवाह पर अपनी सहमति दी थी। एक बार इस घर की बहू बन जाने के बाद स्वयं श्रीमति इंदिरा गांधी और भारत की जनता ने श्रीमति सोनिया गांधी को सहज हृदय से स्वीकार किया था। मन में उलझन तो तब पैदा होती है, जब भारतवासी तो श्रीमति सोनिया गांधी में अपना विश्वास प्रकट करते हैं, परन्तु जब जब मौका आता है श्रीमति सोनिया गांधी की भारत के प्रति निष्ठा आश्चर्यजनक रूप से संदिग्ध दिखती है। 1968 में राजीव गांधी से विवाह होने के बाद से ही श्रीमति सोनिया गांधी का जीवन रहस्यमय ही बना हुआ है। कुछ प्रश्न ऐसे हैं, जिनका जवाब हर भारतीय के सशंकित मन को संतुष्ट कर सकता है, इसलिए श्रीमती सोनिया गाँधी को चाहिए की वे कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष होने के नाते ना सही लेकिन इस देश की बहू होने के नाते ही इन प्रश्नों का जवाब जरुर दे।
पहला यह कि क्या कारण था जिसके चलते १९७७ के आम चुनावों श्रीमति इंदिरा गांधी की पराजय के बाद श्रीमति सोनिया गांधी ने अपने बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ इटली के दूतावास में शरण ली? क्या उन्हैं सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही गांधी परिवार के वर्चस्व की समाप्ति का भय सता रहा था, या वे भारत को अपने और अपने बच्चों के लिये सुरक्षित जगह नहीं मानती थीं?
दूसरा प्रश्न भी महत्वपूर्ण है कि श्रीमति सोनिया गांधी किस वंश की ‘” शाखा” हैं। उनका असली नाम सोनिया माइनो है या एंतोनियो माइनो? उनका जन्म लुसियाना में हुआ या ओरबासानो में? क्योंकि श्रीमति सोनिया गांधी के जन्म प्रमाणपत्र में उनका नाम एंतोनियो माइनो है, एंतोनियो माइनो कैसे सोनिया माइनो बनी, इसके पीछे की क्या कहानी है, इसको जानने का हक तो सामान्य भारतीय को है ही।
तीसरा प्रश्न यह भी है कि क्या आर्थिक तंगी से परेशान होकर श्रीमति सोनिया गांधी ‘नन’ बनना चाहती थी, और उसके लिए उन्होंने घर छोड़ा? लेकिन उनके पिता स्टीफनो माइनो ने उन्हैं कैम्ब्रिज भेज दिया, जहां वे रोजगार करने के साथ ही अपनी पढ़ाई भी कर रही थी?
चौथा प्रश्न भारत सरकार के मंत्री और स्व0 राजीव गांधी के मित्र रहे श्री सुब्रमण्यम स्वामी आज भी पूछ रहे हैं कि कैम्ब्रिज में उन्होंने शिक्षा कहां से और किस स्तर तक प्राप्त की? क्योंकि जो दावा श्रीमति सोनिया गांधी ने लोकसभा को दिये अपने जीवन वृत्त में किया है, उसको तो कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने झुठला दिया है। लोग ये जानना चाहते हैं कि श्रीमति सोनिया गांधी और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में से कौन झूठा है? यदि श्रीमति सोनिया गांधी ने झूठ बोला तो क्यों और यदि कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय झूठ बोल रहा है तो क्यों?
पांचवा महत्वपूर्ण प्रश्न यह भी है कि भारत ही नहीं विश्व के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवारों में से एक नेहरू-इंदिरा परिवार की बहु बनने के बाद श्रीमति सोनिया गांधी ने किन मजबूरियों के चलते इंश्यारेंस एंजेंट का काम लिया और अपने विजिटिंग कार्ड में भारत के प्रधानमंत्री के आवास को अपना निवास स्थान बताया?
छठा प्रश्न तो स्विट्जरलैंड की प्रतिष्ठित पत्रिका द्वारा किये गए खुलासे पर आधारित है। स्विट्जर इलैस्टेट नामक इस पत्रिका ने 11 नवम्बर1991 के अंक में खुलासा किया कि राजीव गांधी और उनकी पत्नी श्रीमति सोनिया गांधी के स्विस बैंक के गुप्त खाते में दो अरब (2 बिलियन) डालर थे। यह खाता उनकी नाबालिग संतानों के नाम से था, इतना पैसा इस परिवार के कहां से आया? इस समाचार का आज तक खंडन क्यों नहीं किया गया? क्या भारत के नागरिकों को यह भी जानने का अधिकार नहीं है कि श्रीमति सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के इस देश के अलावा विदेशों में भी बैंक एकाउन्ट हैं या नहीं?
संातवा प्रश्न,हार्वर्ड विश्वविद्यालय के शिक्षा शास्त्री येवजेनिया अल्बास ने रशियन गुप्तचर एंजेंसी के जी बी द्वारा किये गए पत्र व्यवहार को देखकर बताया है कि विक्टर चेब्रीकोव ने लिखित में ‘भुगतान यू एस डॉलर में लेने के लिए राजीव गांधी के परिवारिक सदस्यों सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी और पावलो माईनो (श्रीमति सोनिया गांधी की मां) को ‘‘अधिकृत’’ किया।’ क्या भारत की जनता इस प्रश्न का जवाब नहीं जानना चाहेगी कि श्री विक्टर चैब्रीकोव कौन हैं? और इन्होंने किस कारण से और कितनी राशी का भुगतान दिसम्बर 1985 में इस परिवार को किया?
आठवां प्रश्न श्रीमति सोनिया गांधी के ओतोवियो क्वात्रोच्ची के आपसी संबंधों पर आधारित है। श्रीमति सोनिया गांधी के ओतोवियो क्वात्रोच्ची से क्या संबंध हैं? एक हथियार सौदागरों के दलाल से भारतीय बहू के संबंधों के खुलासे के लिये भारत परिवार आज भी इंतजार कर रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस ‘दलाल’ के जरिये विदेशी गुप्तचर एंजेसिंया भारत की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा का भेद ले रही हों।
नवां प्रश्न श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा की जा रही व्यापारिक गतिविधियों पर केन्द्रित है । श्रीमति सोनिया गांधी को इस आरोप पर भी अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिये कि इतना पैसा और विदेशों में एकाउंट होने के बावजूद वे किन वस्तुओं के आयात निर्यात का व्यापार करती थीं? क्या यह समस्त राशी उसी व्यापर के कारण अर्जित की गई है? और यह भी स्पष्ट किया जाना चाहिये कि श्रीमति सोनिया गांधी के अलावा क्या उनकी बहनें भी इस व्यापार में उनकी साझीदार हैं।
दसवें और अंतिम प्रश्न के रूप में यह जानना भी अत्यावश्यक है कि श्रीमति सोनिया गांधी द्वारा इटेलियन पासपोर्ट लौटा देने की स्थिति में क्या उनकी इटली की नागरिकता स्वतः ही समाप्त हो जाती है? इसी प्रकार क्या राहुल और प्रियंका गांधी के पास आज भी इटेलियन पासपोर्ट है? और वे अपनी विदेश यात्राऐं किस देश के पासपोर्ट पर करते हैं?
ये सिर्फ 10 सहज और छोटे से प्रश्न हैं, जिनका जवाब 118 करोड़ भारतीयों को संतुष्ट कर सकता है। जरूरत इस बात की है कि श्रीमति सोनिया गांधी पर उठने वाले हर सवाल पर हल्ला मचाने की बजाय कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता इन प्रश्नों के जवाब दें।
सवाल यह नहीं है कि श्रीमति सोनिया गांधी का विरोध करके ही कांग्रेस विरोधी दलों की राजनीति चलती है, सवाल इससे भी अधिक गहरा और गंभीर है कि जिस व्यक्ति के अतीत के बारे में हम पुख्ता रूप से नहीं जानते, जिस व्यक्ति ने अपने आपसी संबंधों को देश के 118 करोड़ लोगों की भावनाओं से ज्यादा अहमियत दी, जिसने भारत की जनता को तो क्या अपनी ही पार्टी को सच्चाई बताने की कोशिश नहीं की, जो श्रीमति सोनिया एक ऐसी महिला को अपना प्रमुख सिपहसालार बनाती है, जिससे ना केवल राजीव गांधी सख्त नफरत करते थे अपितु उस महिला ने श्रीमति इंदिरा गांधी तक को डायन कह डाला, और अति तो तब हो गई जब श्रीमति सोनिया गांधी ने राजनीतिक सत्ता प्राप्त करने के लिए दक्षिण भारत के उस राजनीतिक दल का भी समर्थन ले लिया जिसने राजीव गांधी के हत्यारों को बचाने का प्रयास किया था।
तो जब इतने सारे भ्रम और प्रश्न सामने हों तो कांग्रेस के नेताओं और उसके कार्यकर्ताओं को बजाय हो हल्ला मचाकर प्रश्न करने वालों को चुप कराने के इन प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करना चाहिये, जिससे देश राजनीतिक रूप से सशक्त और समर्थशाली नेताओं के हाथों में सुरक्षित रहे।

Wednesday, November 3, 2010

भ्रष्टाचरण और कांग्रेस

जरा याद कीजिये 2009 का आम चुनाव। कांग्रेस ने स्लम डॉग मिलेनियर फिल्म के गीत ‘जय हो’ को चुनावों हेतु अपने लिए ब्रांड गीत बनाया था, और उसी गीत को गांव गांव बजाकर वह सत्ता के सिंहासन पर जा बैठी। सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली यू पी ए ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व में एक बार फिर सत्ता संभाल ली। सत्ता संभालने के दो साल बाद ही यू पी ए सरकार की नीतियों के कारण आत्महत्या कर रहे किसानों पर बनी फिल्म ‘पीपली लाइव’ के जरिये एक और गीत सामने आया, ‘सखी, सैंया तो बहुत ही कमात हैं, मंहगाई डायन खाए जात है’। ये दोनों गीत ही कांग्रेसी शासन की कथनी और करनी का अन्तर स्पष्ट कर देते हैं।
हाल ही में मुम्बई में सामने आए आवास घोटाले ने एक बार फिर साबित किया है कि कांग्रेस को सत्ता भ्रष्टाचार का नंगा खेल करने के लिए ही चाहिये। यह बार बार याद रखे जाने की जरूरत है कि जैसे भारत के स्वाधीनता आंदोलन नेतृत्व का श्रेय महात्मा गांधी को दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार आजाद भारत में सत्ता के सर्वाधिक दुरूपयोग और उसे भ्रष्ट करने के लिये जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गाँधी का नेतृत्व जिम्मेदार है।
दरअसल, कांग्रेस ने एक राजनीतिक दल और सरकार के रूप में अपने अधिकार का इस कदर दुरूपयोग किया कि सिर्फ कांग्रेस ही नहीं भारत की संपूर्ण राजनीति भ्रष्टाचार का केन्द्र बन गई । यह पूछा ही जाना चाहिये कि लोहिया और जयप्रकाश के शिष्य लालू यादव और मुलायम सिंह ने राजनीति में भ्रष्टाचार करना कहां से सीखा? यह भी जानने की जरूरत है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े वर्ग और मुसलमानों का पक्का वोट बैंक होने के बाद भी हर चुनाव में बसपा पर टिकिट बेचने के आरोप क्यों लगते हैं? ऐसा कौन होगा जिसने राजनीति में
शुचिता लाने के लिए कृत संकल्प राजनीतिक दल भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण को एक लाख रूपये की रिश्वत लेते हुए टेलीविजन पर नहीं देखा? और वामपंथियों ने तो भ्रष्ट आचरण की ऐसी आंधी चलाई जो केवल रूपये पैसे तक सीमित नहीं रही, अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए उसने कई बेगुनाहों को अपनी राजनीतिक बर्बरता का निशाना भी बनाया।
जब गंगा का उद्गम ही गंदा और अपवित्र हो तो वह पवित्रता कहां से प्रदान करेगी? आजादी के बाद कांग्रेस और विशेषकर नेहरू परिवार ने सत्ता का उपभोग किया है, यह ही वह समय था जब भारत के सम्मान और स्वाभिमान की नींव रखी जानी थी, इस दौर की ही सरकारों पर यह जिम्मेदारी थी कि वे भारत के नागरिक को स्वच्छ, ईमानदार और संवेदनशील प्रशासन उपलब्ध कराते, जिसमें आम आदमी अपनी गरिमा को महसूस कर पाता। लेकिन कांग्रेस के नेताओं ने ऐसा रास्ता चुनना ज्यादा बेहतर समझा, जिसमें उनके वंश और पीढ़ियों के राजनीतिक साम्राज्यशाही की रक्षा तो होती थी, परन्तु आम भारतीय पांच साल में एक बार वोट देने वाला ऐसा गरीब और बेबस मतदाता बन गया जो हर बार अपनी तकदीर संवारने के लिए वोट देता था, और उसे हर बार लुभावने नारों और विज्ञापनों के जरिये छल लिया जाता था।
दरअसल, नेहरू की कांग्रेस ने भ्रष्टाचार की शुरूआत 1948 में ही कर दी थी, जब कश्मीर में पाकिस्तान की धुसपैठ का जवाब देने के लिए सेना के लिए खरीदी जाने वाली जीपों में ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त कृष्णा मेनन की भूमिका सामने आई। इन्हीं कृष्णा मेनन की भ्रष्ट भूमिका को जानते बूझते हुए नेहरू सरकार ने ना केवल उनके खिलाफ चल रही जांच को बंद कर दिया, अपितु कृष्णा मेनन के चुप रहने की कीमत पण्ड़ित जवाहर लाल नेहरू ने उन्हैं मंत्रीमंडल में शामिल कर के चुकाई।
भारतमाता की सुरक्षा के लिए खरीदी गई बोफोर्स तोप से लेकर कारगिल में शहीद हुए सैनिक अधिकारियों के लिए मुंबई में आदर्श हाउसिंग सोसायटी द्वारा बनाए गए फ्लैट्स घोटाले ने यह भी साबित कर दिया है कि कांग्रेस के लिए सैनिकों की कीमत एक चोकीदार से ज्यादा नहीं है? कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमति सोनिया गाँधी से लेकर प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह तक ने आज तक कांग्रेस पार्टी द्वारा किए गए अपराधों के लिए देश से क्षमा नहीं मांगी है, अपितु वे इन मामलों में लीपा पोती करने की ही कोशिश कर रहे हैं।
आश्चर्य की बात तो यह है कि कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को हिन्दुस्तान के अंदर दो हिंन्दुस्तान तो नजर आते हैं। एक गरीब हिन्दुस्तान और दूसरा अमीर हिन्दुस्तान, और वे गरीब हिन्दुस्तानियों को कांग्रेस से जोड़ने के लिए तरह तरह के स्वांग रचते हुए भी दिखाई देते हैं। लेकिन वे कभी आजाद भारत में हुए भ्रष्टाचार पर श्वेत पत्र प्रकाशित करने की बात नहीं कहते। वे ये भी नहीं कहते कि विदेशों में जमा काला धन भारत में लाने के लिए उनके पास क्या कार्ययोजना है? उनकी बातें तो बड़ी बड़ी और साफ सुथरी हैं लेकिन क्या उनके पास इस बात का जवाब है कि बोफोर्स तोप दलाल क्वात्रोची को किस राजनीतिक परिवार के संरक्षण के कारण भारत का कानून सजा नहीं दे पाया है। दरअसल, वे ऐसे राजकुमार की तरह बर्ताव कर रहे हैं जो अपने साम्राज्य को बनाए रखने के लिए तरह तरह के स्वांग रच रहा है। राहुल गांधी को चाहिये कि वे राजनीति से कुछ समय निकाल कर अपनी युवा टीम के साथ नॉक आउट फिल्म देखें, जिसमें विदेशों में जमा भारतीय मुद्रा को वापस लाने की फिल्मी कोशिश की गई है।
क्या कोई भी व्यक्ति जो राजनीतिक मामलों की जरा सी भी समझ रखता है, वो इस बात पर सहमत हो सकता है कि पिछले महिने संपन्न हुए राष्ट्रमंडल खेलों के आयोजन में हुए भ्रष्टाचार में कांग्रेसी नेता शामिल नहीं थे? भारतीय ओलम्पिक संघ के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी ने खुद यह माना है कि दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमति शीला दीक्षित की पूरे आयोजन की तैयारी में “बड़ी भूमिका” थी। ध्यान देने योग्य बात यह है कि नेहरू-गांधी परिवार के अति विश्वस्त लोगों के नाम ही भ्रष्टाचार करने में प्रमुख हैं। प्रश्न यह है कि भोपाल गैस त्रासदी के ‘खलनायक’ मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह आज कहां हैं? तेल के बदले अनाज घोटाले के मुख्य किरदार पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह आज कितने लोगों को याद हैं? और छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी तक राजनीतिक परिदृष्य से गायब हैं।कांग्रेस का यह तंत्र भ्रष्ट तरीके से अर्जित किये गए धन को वापस वसूलने की बजाय उस व्यक्ति को हटा देने में ज्यादा विश्वास रखता है, जिसका भ्रष्टाचार उजागर हो गया है।

कॉमनवेल्थ खेल हों या नरेगा कार्यक्रम कांग्रेस सत्ता किसी भी काम की शुचिता को बनाये रखने में विफल रही है। तो जरूरत इस बात की है कि कांग्रेस के कार्यकर्ता ही उनके नेताओं द्वारा संरक्षित, पोषित और पल्लवित भ्रष्टाचार के खिलाफ उठ खड़े हों और भारत के जन को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिए अपने ‘गिलहरी’ के समान ही सही योगदान को देकर अपने राजनीतिक जीवन को सार्थक करें, क्योंकि यदि गंगोत्री पावन और पवित्र होगी तो वह गंगा अपनी निर्मलता से पूरे देश को भ्रष्टाचार के संत्रास से मुक्त करा देगी।

सुरेन्द्र चतुर्वेदी
(लेखक सेंटर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट के निदेशक हैं)