क्या कोई भी निरपेक्ष और निष्पक्ष व्यक्ति राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को आतंकवादी संगठन कह सकता है? क्या आतंकवादी संगठन वन्देमातरम् का गान करते हैं? या वे प्रतिदिन अपनी प्रार्थनाओं में ‘परम वैभव नैतुमेतत् स्वराष्ट्रं ’ का उद्घोष करते हैं? क्या समाज में रहने वाले करोड़ों स्वयंसेवकों और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हित चिन्तकों को देखकर मन से आतंकवादी होने का भय उपजता है? क्या जो लोग निकर पहनकर और हाथ में डंडा लेकर शाखा जाते हैं, वे अपने ‘संघस्थान’ पर देश में सांप्रदायिक हमलों की रणनीति बनाते हैं? इन प्रश्नों का जवाब ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चाल, चरित्र और चेहरे को स्पष्ट कर देता है।
दरअसल, जो लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं , वे कभी भी संघ की विचार और व्यवहार धारा को समझ ही नहीं पाये। वे कभी यह नहीं जान पाये कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जनमानस में इतना आदर क्यों प्राप्त है? वे तो सिर्फ इतना समझ पाये हैं कि स्वतंत्र भारत में यह ही एकमात्र ऐसा संगठित संगठन है, जिसके एक आह्वान पर लाखों लोग अपना काम धाम छोड़कर चले आते हैं और यह ही वह ताकत है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विरोधियों को डराती है। क्या किसी ने एक बार भी सोचा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विरोध कौन लोग करते हैं? उनका राजनीतिक सोच और द्रष्टिकोण किन आधारों और विश्वसों पर आश्रित है? आखिर क्यों राजनीतिक दल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को समझने की बजाय अपने मतदाताओं को भरमाते रहते हैं?
दरअसल, जब जब कांग्रेस की सत्ता होती है, तो उसके निशाने पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही रहता है, क्योंकी पूरी की पूरी राजनीतिक व्यवस्था यह मानती है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राण देश भक्ति में ही बसते हैं और यदि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ नामक संगठन से देश भक्ति की प्राण वायु को निकाल दिया जाए तो यह संगठन अपने आप ही निस्तेज और प्राणहीन हो जाएगा और एक बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्राणहीन कर दिया तो फिर देश के हितों और भविष्य के साथ खिलवाड़ करने वाले राजनेताओं पर कोई लगाम ही नहीं रह जाएगी। इसीलिए हर मौके बेमौके पर संघ को बदनाम कर सकने वाली हर कोशिश करना राजनेता अपना पुनीत कर्तव्य समझते हैं।
अब जरा बात हो जाए अजमेर दरगाह ब्लास्ट के मामले की जांच की। याद कीजिए बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव। तब भी केन्द्र में यही सरकार थी और रेल मंत्री थे श्रीमान लालू प्रसाद यादव। उन्होंने मुस्लिम मतों को अपनी तरफ करने के लिए गोधरा कांड के लिए एक अलग से जांच आयोग गठित किया था, उस जांच आयोग की रिपोर्ट भी आ गई , परन्तु कार्यवाही आज तक नहीं हुई । लालू यादव और सोनिया गांधी अब गोधरा के बारे में बात ही नहीं करते। इसी प्रकार इस बार भी बिहार विधानसभा चुनाव का मौका है, जहां पर कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता उनको अगला प्रधानमंत्री घोषित करने से नहीं थक रहे हैं और जनमत जनता दल और भाजपा के पक्ष में जा रहा है, ऐसे में एक ही उपाय है, मुस्लिमों को पक्ष में करने के लिए संघ की बदनामी और इस बार बारी है, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार की ।
अजमेर दरगाह ब्लास्ट मामले में सत्ता की आंख देखकर कार्य करने वाली सरकारी व्यवस्था एक बार फिर कठघरे में है। इस मामले में आरोपियों को पकड़ा जा चुका है, उनके खिलाफ चालान पेश हो रहे हैं और उन आरोपियों की पृष्ठभूमी के आधार पर जिस तरह से सरकारी अमला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को बदनाम करने की साजिश रच रहा है, उससे सरकारी कार्य तंत्र की ही संदेह के घेरे में है।
सरकारी आरोप है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल के सदस्य इन्द्रेश कुमार अजमेर दरगाह ब्लास्ट के षड़यंत्र में सहभागी हैं, इसके लिए उन्होंने जयपुर स्थित गुजराती समाज की धर्मशाला में एक भाषण भी दिया। आश्चर्य इस बात का है कि छोटे से छोटा अपराधी भी अपनी योजनाओं के बारे में किसी से कुछ नहीं कहता, लेकिन ए टी एस कहती है कि अजमेर दरगाह ब्लास्ट को अंजाम देने के लिए इन्द्रेश कुमार ने भाषण दिया।
इस पूरी कहानी में एक बार भी सरकारी पक्ष ने इन्द्रेश कुमार से बात नहीं की, उन्होंने अपने भाषण में क्या कहा, वह नहीं बताया और वह भाषण किस संस्था के कार्यक्रम में दिया गया और उसमें कौन कौन लोग उपस्थित थे, यह भी ए टी एस को नहीं पता? तो फिर यह क्यों नहीं माना जाए कि सरकारी एंजेसियां सत्ता में बैठे लोगों की आंख देख कर अपने कर्तव्यों को पूरा कर रही हैं।
ध्यान देने लायक तथ्य यह भी है कि जिस इन्द्रेश कुमार ने इतना बड़ा षड़यंत्र रचा, उसके खिलाफ पूरी सरकार ने अभियोग पत्र भी प्रस्तुत करने की मेहनत तक नहीं की, और ना ही इतने ‘खतरनाक मास्टर माइंड’ को 2007 से लेकर चालान पेश किये जाने तक गिरफ्तार कर पूछताछ की गई । यह तो सारा मामला ही राजनीतिक अव्यवस्था का घटिया नमूना है।
जांच तो इस बात की भी की जानी चाहिये कि जिस व्यक्ति के खिलाफ अभियोग पत्र भी नहीं बन पाया, उस व्यक्ति और संस्था को मीडिया के जरिये किसने और क्यों बदनाम करने की साजिश रची ? पूरी दुनिया में तब तक किसी को अपराधी नहीं माना जाता जब तक अदालत में उस व्यक्ति का दोष सिद्ध नहीं हो जाए, लेकिन इस मामले में तो अदालत में चालान पेश करने से पूर्व ही इन्द्रेश कुमार का नाम कांग्रेस के नेता ले रहे थे।
यह भी महत्त्वपूर्ण है कि अजमेर दरगाह ब्लास्ट का चालान पेश होने से पूर्व सोनिया गाँधी के विश्वस्त महासचिव दिग्विजय सिंह अकारण और असंदर्भित बयान जारी कर कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को पाकिस्तानी खुफिया एंजेसी आई एस आई से मदद मिलती है। उसके बाद सोनिया पुत्र राहुल गांधी अपने ‘विवेक’ से मत व्यक्त करते हैं कि उनके लिए संघ और सिमी में कोई अन्तर नहीं है। उसके बाद सोनिया गांधी के ही एक कृपा पात्र अशोक गहलोत की सरकारी आंख देखकर अजमेर दरगाह ब्लास्ट में संघ के वरिष्ठ प्रचारक इन्द्रेश कुमार का चार्जशीट में नामोल्लेख किया जाता है । क्या इन सभी बातों का एक ही क्रम में होना महज एक संयोग है या पूरी कांग्रेस बिहार में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखकर राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के खिलाफ माहौल बना रही है, जिससे मुसलमानों को अपने पक्ष में किया जा सके।
दरअसल, यह समझे जाने की जरूरत है कि जब जब कांग्रेसी सत्ता ने सरकारी तंत्र के माध्यम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को प्रतिबंधित करने, बदनाम करने की कोशिश की है, तब तब यह संगठन और ताकतवर होकर सामने आया है। समझना कांग्रेस को है कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को ताकत प्रदान करना चाहती है या देशभक्तों के इस सैलाब को रोकना चाहती है, यदि कांग्रेस के नेताओं की दिलचस्पी वास्तव में संघ को समाप्त करने में है, तो उन्हैं वह राष्ट्रवादी स्वरूप अंगीकार करना होगा जो तिलक, मालवीय, गांधी, सरदार पटेल, गोखल और सुभाष चंद्र बोस के मनों में बसती थी।
सुरेन्द्र चतुर्वेदी
लेखक सेण्टर फॉर मीडिया रिसर्च एंड डवलपमेंट के निदेशक हैं।
Sunday, October 24, 2010
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