भारत में भगवा आतंकवाद है, यह खोज भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने नहीं अपितु श्री पी. चिदम्बरम ने की है और यह भी कि श्री चिदंबरम सिर्फ वकील ही नहीं हैं अपितु भारत सरकार के गृह मंत्री भी हैं, और सबसे बड़ी बात यह है कि श्री चिदंबरम ने यह खुलासा किसी प्रश्न के जवाब में नहीं किया, अपितु देश भर के राज्य पुलिस प्रमुखों के दो दिवसीय सम्मेलन में किया है। भगवा आंतकवाद पर तो चर्चा तो बाद में करेंगें लेकिन यह जानना जरूरी है कि क्या भारत के गृहमंत्री पुलिस अधिकारियों के गले यह बात उतारने की कोशिश कर रहे हैं कि अब पुलिस अधिकारी ‘भगवा’ बात करने वाले लोगों को आतंकवादी के रूप में देखने की कोशिश शुरू कर दें। इसी से जुड़ा हुआ दूसरा प्रश्न है कि भगवा आतंकवाद को अस्तित्व में लाकर वे अपना कौनसा राजनीतिक ऐजेंडा पूरा कर रहे हैं या दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किस को खुश कर रहे हैं?
प्रश्न यह उठता है कि भारत में भगवा आतंकवाद की बात क्यों और कहां से शुरू हुई ? दरअसल इस प्रश्न की जड़ में एक मूल प्रश्न है कि ‘हर आतंकवादी मुसलमान ही क्यों होता है?’ जब देश की जनता ने संसद पर और मुंबई में हुए आतंकी हमले में अफजल गुरू और कसाब का नाम आने के बाद और अदालत द्वारा उन्हैं दोषी पाए जाने के बाद यह प्रश्न पूछना शुरू किया तो इस प्रश्न का जवाब देश के मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम समाज ने देने की बजाय, देश की सद्भावना बनाए रखने वाले सर्वस्पर्शी दल कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने देना उचित समझा। मालेगांव विस्फोट में साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और दया शंकर पाण्डेय का नाम आने के बाद तो अंधे के हाथ बटेर लग गई । पूरी सरकार और उसके सहयोगी दल यह सिद्ध करने में लग गये कि ‘आतंकवादी सिर्फ मुसलमान ही नहीं होता, हिन्दू भी होता है।’ अपनी इस दलील को पुष्ट करने के लिए सरकार ने दो और प्रकरणों को जनता के सामने रखा इनमें एक गोवा में सनातन संस्था से जुडे लोगों का कारनामा है और दूसरा दिनेश गुप्ता का। कहा जा रहा है कि भगवा मानसिकता के लोग देश की आंतरिक सुरक्षा और सद्भावना को बिगाड़ने में लगे हुए हैं।
श्री चिदंबरम से एक छोटा सा सवाल है कि वे जिस भगवा आतंकवाद की बात कर रहे हैं उसका मतलब क्या है? क्या वे भारत में सनातन काल से चली आ रही संत परम्परा को आतंकवाद से जोड़ रहे हैं? या फिर वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुडे संगठनों और कार्यकर्त्ताओं को आतंकवादी कह रहे हैं ? या फिर वे ये कहना चाहते हैं कि भारत में मंदिर जाने वाले हर व्यिक्त से भारत की एकता और अखंड़ता को खतरा है ? या उनको लगता है कि देश में पनप रहे मुस्लिम आतंकवाद, नक्सली आतंकवाद का जवाब देने की बजाय ‘भगवा आतंकवाद’ की बात को स्थापित करना उनके तथा उनकी सर्वस्पर्शी पार्टी के राजनीतिक हित में है। श्री चिंदम्बरम शायद यह भूल गये हैं कि स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी लगभग हर सभा में यह पूछते नजर आते थे कि आज की सभा में कितने मुस्लिम भाई आए हैं? वे कहते थे कि भारत की आजादी की जितनी जरूरत हिन्दुओं को है, उतनी ही यह मुस्लिमों के लिए भी आवश्यक है, अत: हर हिन्दू भाई का कर्तव्य है कि वह अपने साथ एक मुस्लिम भाई को अवश्य ही लेकर आए। लेकिन कितने मुसलमान महात्मा गांधी के साथ आए? उस समय भी मुसलमान महात्मा गांधी की अपील को इसलिए अनसुना कर देते थे, क्योंकि उनका यह विश्वास था कि कांग्रेस हिन्दू नेताओं की पार्टी है, उसमें मुसलमानों के लिए कोई स्थान नहीं है। देश का बंटवारा कर देने के बाद भी क्या मुसलमानों का यह चरित्र बदला ? क्या आज भी मुसलमान कांग्रेस को अपना मानते हैं? वे अपने फायदे और नुकसान का आकलन करते हैं। गुजरात में वे कांग्रेस के साथ हैं तो बिहार में नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, रामविलास पासवान और उत्तर प्रदेश में कभी मुलायम सिंह के साथ तो कभी मायावती के साथ। इसी प्रकार हर राज्य में उनकी अपनी गणित है। इस गणित को महात्मा गांधी और नेहरू जैसे कद्दावर नेता नहीं समझ पाये तो वर्तमान कांग्रेसी नेतृत्व तो उनके मुकाबले काफी बौना है।
दरअसल, वोट की राजनीति और तुष्टीकरण की नीति के चलते केंद्र सरकार इतना नीचे गिर चुकी है कि इस देश को ‘मां’ मानने वाले और किसी व्यक्ति की बजाय भगवा ध्वज को ही आराध्य मानने वाले करोड़ों भारतीयों को भगवा आतंकवादी कहने में गर्व महसूस कर रही है। यदि केंद्र सरकार के पास ‘भगवा आतंकवाद’ के इतने पुख्ता सबूत हैं तो वह इन भगवा संस्थाओं पर प्रतिबंध क्यों नहीं लगाती है? क्यों साध्वी प्रज्ञा, कर्नल पुरोहित और दयाशकर पाण्डेय जैसे ‘आतंकवादियों’ के खिलाफ सक्रयिता दिखाकर अदालत से उन्हैं फांसी की सजा दिलवाती? और पाकिस्तान के साथ बातचीत में यह स्वीकार करती कि अफजल गुरू और कसाब पाकिस्तान के इशारे पर नहीं अपितु ‘भगवाधारियों’ के इशारे पर भारत की अस्मिता के साथ खिलवाड़ करने आए थे।
हमारी सबसे बड़ी समस्या ही यह है कि हमारा शासक वर्ग अपनी सत्ता को बचाए रखने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहता है। चाहे उसे विदेशी आंक्राताओं के सम्मान में कालीन बिछाने का काम मिले, या फिर अपनी ही मातृभूमि के साथ गद्दारी करनी पडे, उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता अपनी सत्ता को बचाए रखना है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत का क्षैत्र इरान (आर्यन ), अफगानिस्तान (उपगणस्थान)से लेकर इंडोनेसिया तक था, आज यदि हमको भारत कश्मीर से कन्याकुमारी तक ही दिखता है, तो इसका कारण यहां के नागरिक नहीं अपितु शासक हैं, जिनके बाजुओं में विद्रोहियों से निपटने की ताकत ही नहीं थी और ना ही वह दृष्टि थी जिसके आधार पर वे दुश्मन और उसकी नीयत को पहचान पाते। आज भी कश्मीर में भाडे के टट्टू हमारे जवानों पर पत्थर फैंक कर आजाद कश्मीर के सपने को हकीकत में बदलने की कसमें खा रहे हैं और हमारी ही कृपा पर पलने वाला नेपाल जैसा पिद्दी सा देश हमारे ही खिलाफ चीन और पाकिस्तान का साथ दे रहा है।
श्री चिदम्बरम उन्हीं शासकों की श्रृंखला की निचली पायदान का मोहरा भर हैं, जिनसे दुश्मनों के हौंसले तो पस्त किये नहीं जाते, लेकिन दिल्ली के वातानुकूलित भवनों में बैठकर ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्यौरी को पुष्ट करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि जिन्हैं आप आतंकवादी साबित करने की धमकी दे रहे हैं, उन्हैं इस देश पर मर मिटने के लिए किसी शासक के प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं होती। ये वे करोड़ों लोग हैं, जो सिर्फ एक ही आशा के साथ ‘भगवा ध्वज’ को प्रणाम करते हैं कि एक सुबह ऐसी होगी, जब भारत विश्व का सिरमौर होगा, भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए दोनों समय का भोजन, पहनने को वस्त्र और अर्जन करने के लिए ज्ञान होगा। हर किसान को काम होगा। भारत में रहने वाले वनवासियों को नक्सली और सरकारी गोलियों का निशाना नहीं बनाया जाएगा। उनकी खूबसूरत दुनियां में वे सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी, जो श्री चिदंबरम को दिल्ली में उपलब्ध हैं।
Thursday, August 26, 2010
Tuesday, August 10, 2010
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